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पुस्तक ‘‘मोही शतक’’ से अंश ……
डा. सुरेन्द्र शर्मा द्वारा दिया गया अभिमत ……
कवि भावलोक का प्राणी होता है। वह संसार में रहता है सांसारिक कर्मों का पालन भी करता है, शारीरिक ऐन्द्रिक धर्मों का निर्वाह भी करता है, फिर भी सनातन सत्य को प्रतिष्ठा के लिए वह निरन्तर प्रयासरत होता है। उसका भावलोक सांसारिक विकृतियों के विरुद्ध खुलकर बोलने के लिए प्रेरणा देता ही रहता है, इसलिए वह जो कुछ करता है उसे भाव की भाशा में अभिव्यक्त करता है, जो श्रोता पर पाठक के हृदय पर औषधि जैसा काम करती है। उसका कटु भी मीठेपन का आभास देता है और उसे विसंगतियों के रोग से मुक्त कर स्वस्थ बना देता है।
प्रकृति का स्वभाव विकृति होता है। कवि उस विकृति को संस्कृति से जोड़ देता है, विश्व का इतिहास इसका साक्षी है। चाहे वह राम रावण का काल हो वह रामायण के माध्यम से क्षमता लाने की प्रेरणा देता है। चाहे वह महाभारत का काल हो वह व्यास के रूप में सत्य की प्रतिष्ठा करता है। इसलिये वह सृष्टि के कल्याण् के लिये कार्य करता है विनाश के नहीं। उसका भाव लोक उसे भक्ति से जोड़ देता है चाहे वह भगवद् भक्ति हो अथवा राष्ट्र भक्ति, समाज भक्ति मानवमात्र की भक्ति हो। वह सृष्टि के विनाश के विरुद्ध खड़ा होकर विकास के लिये अपनी कविता की सर्जना करता है। मेरा आरम्भ से ही विश्वास रहा है कि कवि ही संसार का उद्धार कर सकता है। इसलिये जीवन में उनसे अधिक सम्पर्क रहा।
वृन्दावन की सांस्कृतिक संस्था रसमंजरी के माध्यम से मेरा वृन्दावन के अनेकों कविता धर्मियों से सम्पर्क हुआ। इस क्रम में श्री मोहन ‘मोही’ से भी सम्पर्क हुआ। यह युवाकाल से ही कविता से जुड़ा हुआ है। ये स्पष्ट संकेत देते हैं स्वयं को सुधारो संसार सुधर जायेगा अन्य शु़द्ध शब्द तुम्हारा संस्कार नहीं कर सकते और तुम असहाय बने खड़े देखते रह जाओगे-
गीत के शब्द, बाइबिल कुरान क्या करें?
गौतम और नानक की जुबान क्या करे?
जब भावना नही तो भगवान क्या करें?
इन्सानियत दफन है इन्सान क्या करे?
कवि का नाम मोहन अर्थात् मोह-‘न’ होना सिद्ध करता है फिर भी कवि ने अपना नाम मोही की स्वीकार किया है, हो सकता है कि उनका मोह वासनाओं से न होकर, देश, राष्ट्र और मानव मात्र से हो। इसीलिये वे यथार्थ का वर्णन कर परमार्थ की ओर संकेत करते हैं। उन्होंने व्यंग्य के माध्यम से देश के यथार्थ को ही अधिक तथा कविताबद्ध किया है और संकेत दिया है इस घृणित वास्तविकता से दूर हटकर नये वर्तमान का निर्माण करें। इसीलिये उन्होंने प्रचलित भाषा ही अपनाना सर्व सुगम बन सकता है। सुगमता के साथ-साथ सहजता भी देखने को मिलेगी। यत्र तत्र अलंकार भी देखने को मिलेंगे। व्यंग्य को तो विषेश स्थान भी दिया है।
उनकी रचना में गतिशीलता है इससे यही अनुमान लगाया जा सकता है कि वे कविता के क्षेत्र में और भी सिद्धहस्तता प्राप्त करते रहेंगे। उनकी आगामी रचना इसे सिद्ध करेगी। मैं उनकी कविता-प्रियता के लिये मंगलकामनायें करता हूँ, और आशा करता हूँ कि वे वर्तमान काव्य जगत् के शिखर तक पहुंचें।
वैसे आज की शिक्षा पद्धति ने विद्यार्थी को कविता से दूर खड़ा कर दिया है फिर भी कविता हृदय की निधि होती है, समाज में सहृदय व्यक्ति निरन्तर बने रहेंगे। व्यावसायिकता (अर्थलोलुप व्यावसायिकता) ने आज व्यक्ति को जिस भोगवाद से जोड़ दिया है, उस युग का भी कभी न कभी अस्त होना ही है। हृदय, भावानुरक्ति भी जीवन होगी, और जैसा कि अतीत भारत में कवित्व को मिला था, वैसा ही सहत्व वर्तमान में पुनः स्थापित होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
पुनश्च कवि के लिये मेरी सहस्त्रशः शुभकामनायें।
शुभमस्तु।
डा. सुरेन्द्र शर्मा
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